महिला आरक्षण बिल: 27 साल में 8 बार रिजेक्ट, 9वीं दफा मोदी सरकार के हाथ प्रोजेक्ट, पास हुआ तो ऐसे बदलेगी तस्वीर
Women’s Reservation Bill 2023 Benefits: 27 साल में 8 बार रिजेक्ट होने के बाद 9वीं बार महिला आरक्षण बिल भारतीय संसद में पेश होने जा रहा है। इस बार बिल मोदी सरकार के हाथ में है, जिसे मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। यह मुद्दा 27 साल से लटका हुआ था।
Women’s Reservation Bill 2023 Benefits: 27 साल में 8 बार रिजेक्ट होने के बाद 9वीं बार महिला आरक्षण बिल भारतीय संसद में पेश होने जा रहा है। इस बार बिल मोदी सरकार के हाथ में है, जिसे मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। यह मुद्दा 27 साल से लटका हुआ था। 8 सालों में कभी यह राज्यसभा में ही रिजेक्ट हो गया तो कभी लोकसभा में विरोध के कारण पास नहीं हो पाया। अब उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार इस बिल को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकती है। वहीं बिल पास होते ही महिलाओं को काफी फायदा होगा।
महिला आरक्षण बिल से ये फायदे होंगे
महिला आरक्षण बिल को 15 साल के लागू किया जाना है। इस बिल का लक्ष्य महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 33 फीसदी सीटें आरक्षित करना है। बिल में 33 प्रतिशत कोटे में भी SCST, एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण के लिए भी सुझाव हैं। हर बार आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किए जाने का प्रावधान भी बिल में रहेगा, लेकिन इस बिल में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है, जिस कारण विपक्षी दलों द्वारा इस बिल का विरोध किया जाता रहा है।
आखिर बिल की आवश्यकता क्यों है?
महिला आरक्षण बिल पास होने से देश में पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभाओं, विधान परिषदों और संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। सरकारी नौकरी निजी क्षेत्र में और साथ ही देश की सियासत में भी महिलाओं की भागेदारी बढ़ेगी। अगर वर्तमान की बात करें तो लोकसभा में 78 महिला हैं , जो कुल संख्या 543 का 15 प्रतिशत से भी काम हैं। राज्यसभा में 32 महिला संसद हैं, जो कुल 238 संसदों का 11 प्रतिशत हैं। बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 10-12 प्रतिशत महिला विधायक थीं।
अब तक ऐसा होता रहा बिल के साथ…
महिला आरक्षण बिल 1996 में पहली बार पेश हुआ था। 2010 में इस बिल पर आखिरी बार इस पर चर्चा हुई थी, लेकिन 1996 से अब तक यह रिजेक्ट होता आया है।
12 सितंबर 1996 को बिल पहली बार देवगौड़ा सरकार ने पेश किया। उस समय संविधान के 81वें संशोधन विधेयक के रूप में यह संसद के पटल पर रखा गया, लेकिन बाद देवगौड़ा सरकार के अल्पमत में आने से 11वीं लोकसभा भंग हो गई और बिल लटक गया।
26 जून 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने बिल को को 12वीं लोकसभा में पेश किया। इस बार बिल को 84वें संशोधन विधेयक बनाकर पेश किया गया, लेकिन विरोध के चलते यह पास नहीं हुआ। वाजपेयी सरकार अल्पमत में आई और 12वीं लोकसभा भंग होने से बिल लटक गया।
साल 1999 में 13वीं लोकसभा में NDA सरकार एक बार फिर सत्ता में आई, जिसने 22 नवम्बर को महिला आरक्षण बिल संसद के पटल पर रखाा, लेकिन इस बिल पर सहमति नहीं बन पाने से यह लटक गया।
भाजपा के नेतृत्व में NDA सरकार ने साल 2002 और 2003 में बिल को संसद में पेश किया, लेकिन इसे पारित नहीं कराया जा सका, जबकि इसका समर्थन देने के लिए कांग्रेस और वामदल आगे आए थे।
कांग्रेस के नेतृत्व में UPA सरकार ने महिला आरक्षण बिल को पारित कराने की इच्छा जताई। इस इरादे से 6 मई 2008 को बिल राज्यसभा में पेश किया गया, लेकिन इसे पास नहीं कराया जा सका, लेकिन इसे चर्चा के लिए संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया।
17 दिसंबर 2009 को संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसका समाजवादी पार्टी, जदयू और RJD ने विरोध किया। बावजूद इसके बिल को दोनों सदस्यों में पेश किया गया, लेकिन पास नहीं हो पाया।
2010 में बिल को एक बार फिर पास कराने की कोशिश की गई। 22 फरवरी 2010 को उस समय राष्ट्रपति रही प्रतिभा पाटिल ने अपने संसदीय अभिभाषण में इसे पास कराने की प्रतिबद्धता जताई। 08 मार्च 2010 को बिल राज्यसभा में आया। सदन में हंगामा हुआ। राजद ने UPA से समर्थन वापस लेने की धमकी दी।
9 मार्च 2010 को कांग्रेस ने भाजपा, जदयू और वामपंथी दलों के सहयोग से राज्यसभा में बिल बहुमत से पारित कराया, लेकिन लोकसभा में विधेयक पास नहीं कराया जा सका।