पंडवानी गायिका ऊषा बारले ने बढ़ाया छत्तीसगढ़ का मान, राष्ट्रपति ने पद्म पुरस्कार से किया सम्मानित…
पंडवानी गायिका ऊषा बारले ने बढ़ाया छत्तीसगढ़ का मान
Padma Awards 2023: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने छत्तीसगढ़ की पंडवानी गायिका ऊषा बारले को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया। छत्तीसगढ़ की पंडवानी गायिका ऊषा बारले ने प्रदेश का मान बढ़ाया है। पद्म पुरस्कार के दौरान दरबार हॉल में कुछ ऐसा किया कि पूरा हॉल तालियों से गड़गड़ा उठा. पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी प्रणाम करके अभिवादन किया। इस दौरान छत्तीसगढ़ की पंडवानी गायिका ऊषा बारले के चेहरे पर अलग ही मुस्कान झलक रही थी। सम्मान समारोह में पीएम मोदी, अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री और हस्तियां शामिल रहीं।
जानिए कौन है पंडवानी गायिका
ऊषा बार्ले कापालिक शैली की पंडवानी गायिका हैं। 2 मई 1968 को भिलाई में जन्मी उषा बारले ने सात साल की उम्र से ही पंडवानी सीखनी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने तीजन बाई से इस कला की रंगमंच की बारीकियां भी सीखीं। पंडवानी छत्तीसगढ़ के अलावा न्यूयॉर्क, लंदन, जापान में भी पेश की जा चुकी है। गुरु घासीदास की जीवनी को पंडवानी शैली में सर्वप्रथम प्रस्तुत करने का श्रेय भी उषा बारले को ही जाता है।
छत्तीसगढ़ से कितने लोगों को मिला सम्मान
बालोद जिला निवासी छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार डोमार सिंह कुंवर ने बालोद जिला सहित पूरे राज्य को गौरवान्वित किया है। बालोद जिले के ग्राम लाटाबोड़ निवासी छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार डोमार सिंह कुंवर को कला के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। बता दें कि डोमार सिंह कुंवर नृत्य कला के साधक एवं मशहूर कलाकार हैं। इन्होंने देश से लेकर विदेशों तक ख्याति प्राप्त की है। ये 12 साल की उम्र से ही नाट्य मंच पर उतर गए थे। छत्तीसगढ़ी हास्य गम्मत नाचा कला विधा को 47 साल से परी और डाकू सुल्तान की भूमिका निभाकर जिंदा रखे हुए हैं। इस 76 साल की उम्र में डोमार सिंह ने नाचा गम्मत को न सिर्फ जिया है, बल्कि अपने स्कूल से लेकर दिल्ली के मंच पर मंचन किया है।
कौन है अजय कुमार मंडावी
कांकेर जिले से सटे गोविंदपुर गांव के अजय कुमार मंडावी का पूरा परिवार कला और शिल्प से जुड़ा है। शिक्षक पिता आरपी मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं। मां सरोज मंडावी पेंटिंग करती हैं। भाई विजय मंडावी एक अभिनेता हैं। लकड़ी की नक्काशी में उन्हें महारत हासिल थी। वे लकड़ी पर धार्मिक ग्रंथ, साहित्यिक कृतियाँ आदि उकेरते हैं। कांकेर कलेक्टर निर्मल खाखा की सलाह पर उन्होंने जेल में बंद पूर्व नक्सलियों को यह कला सिखाई। ऐसे सैकड़ों कैदियों ने उनसे यह कला सीखकर अपनी जिंदगी बदल दी है। पद्म पुरस्कारों की प्रस्तावना में लिखा है कि उन्होंने अपनी कला के माध्यम से वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में खोए हुए लोगों का पुनर्वास किया है।